aksha
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आज भारत दिन दुगनी और रात चोगुनी तरक्की कर रहा है पर इस तरक्की को और भी ज्यादा तेज और प्रभावी बनाया जा सकता है. हम लोग जयादातर टैक्स का भुगतान ना करने के लिए एक बहाना अक्सर ही बनाते हैं की हमारे नेता और नौकरशाह भ्रष्ट हैं इसलिए टैक्स देने से क्या फायदा ?. पर ये बात पूरी तरह से सच नहीं है इसके लिए में एक उदाहरण देना चाहता हूँ जो की निम्नलिखित है :-
हम सभी देखते हैं कि कुछ लोग अपने फायदे के लिए बिजली की चोरी करते हैं. उनके घरों में ए. सी. और दूसरी बिज्लिई से चलने वाली सुविधाएं तो मौजूद होंगी पर वो बिजली का बिल देने के लिए तैयार नहीं होते और बिजली की चोरी करते हैं. क्या इसमें किसी नेता या नौकरशाह का भ्रष्ट आचरण दिखाई देता है ?. शायद नहीं. शायद हम अपने हिस्से की जिम्मेदारी से बचना चाहते हैं. जब एक आदमी बिजली की चोरी करता है तो उसका भुगतान उस ईमानदार उपभोक्ता को करना पड़ता है जो अपनी बिजली के पूरे पैसे जमा करना चाहता है. क्योंकि बिजली कंपनी चोरी की बिजली का खर्चा भी तो कहीं ना कहीं से वसूल करेगी. इसी तरह बिजली के रेट बढते जाते हैं और बिजली की चोरी भी बढती जाती है. और हम बिजली की कमी और बिजली के अधिक दरों का रोना रोने लग जाते हैं. जबकि अच्छी तरह से पता है कि बिजली की चोरी और किल्लत के लिए हम स्वयं ही जिम्मेदार होते हैं.
यही हाल हमारे देश के टैक्स पेयर का हो गया है. जो इमानदारी से टैक्स देना चाहते हैं और दे रहे हैं उनके ऊपर अतिरिक्त बोझ डाल कर बाकी के नागरिक सिर्फ सुविधाभोगी बने हुए हैं. मेरा मानना हैं कि अगर बाकी के क्षमतावान लोग भी अपने टैक्स का भुगतान इमानदारी से करने लगें तो उनको भी इस देश की तरक्की में योगदान देने का गर्व महसूस होगा. और धीरे धीरे टैक्स की कलेक्शन बढ़ेगी और रेट कम होता जाएगा.
दूसरा उदाहरण है कि ज्यादा टैक्स के रेट के लिए भी जनता खुद ही जिम्मेदार होती है. उदाहरण के लिए सरकार बहुत सी चीजें जैसे कि पानी, सड़क और स्वास्थ्य सेवाएं फ्री अथवा नाम मात्र के शुल्क पर उपलब्ध करवाती है क्योंकि इसका खर्चा वो टैक्स वसूल करके उठाती है. क्योकि हर चीज के लिए पैसा वसूल पाना बड़ा ही टेडा और मुश्किल काम होता है. अब क्योकि ये चीजें हमको मुफ्त में मिलती हुयी दिखाई दे रहीं हैं इसलिए हम इनका मूल्य ना समझ कर इनको बर्बाद करते हैं या इनका दुरपयोग करते हैं. मैं प्रतिदिन कितने लोगों को पीने के पानी से गाडी धोते हुए देखता हूँ. क्योकि सरकार ये पानी का खर्चा टैक्स की वसूल की हुयी रकम में से ही उठा रही है इसलिए अगर हम पानी को बर्बाद करेंगे तो हमारे टैक्स का रेट तो बढना तय है. इसलिए बढे हुए टैक्स के लिए भी हम स्वयं ही जिम्मेदार हैं. हम अपनी कुछ भी जिम्मेदारी नहीं समझते और सब कुछ सरकार के ऊपर डाल कर सिर्फ दोषारोपण करते रहना हमारा काम बन गया है.
हम नागरिकों का भी एक फर्ज बनता है कि सरकार जो भी सुविधा हमें हमारे टैक्स के पैसे से मुहैया करवाती है हम उसका बेहतर इस्तेमाल करें और उसे बर्बाद होने से बचाएँ.
आप सभी फोरम के सदस्यों से अनुरोध है कि अपने विचार प्रकट अवश्य करें.
हम सभी देखते हैं कि कुछ लोग अपने फायदे के लिए बिजली की चोरी करते हैं. उनके घरों में ए. सी. और दूसरी बिज्लिई से चलने वाली सुविधाएं तो मौजूद होंगी पर वो बिजली का बिल देने के लिए तैयार नहीं होते और बिजली की चोरी करते हैं. क्या इसमें किसी नेता या नौकरशाह का भ्रष्ट आचरण दिखाई देता है ?. शायद नहीं. शायद हम अपने हिस्से की जिम्मेदारी से बचना चाहते हैं. जब एक आदमी बिजली की चोरी करता है तो उसका भुगतान उस ईमानदार उपभोक्ता को करना पड़ता है जो अपनी बिजली के पूरे पैसे जमा करना चाहता है. क्योंकि बिजली कंपनी चोरी की बिजली का खर्चा भी तो कहीं ना कहीं से वसूल करेगी. इसी तरह बिजली के रेट बढते जाते हैं और बिजली की चोरी भी बढती जाती है. और हम बिजली की कमी और बिजली के अधिक दरों का रोना रोने लग जाते हैं. जबकि अच्छी तरह से पता है कि बिजली की चोरी और किल्लत के लिए हम स्वयं ही जिम्मेदार होते हैं.
यही हाल हमारे देश के टैक्स पेयर का हो गया है. जो इमानदारी से टैक्स देना चाहते हैं और दे रहे हैं उनके ऊपर अतिरिक्त बोझ डाल कर बाकी के नागरिक सिर्फ सुविधाभोगी बने हुए हैं. मेरा मानना हैं कि अगर बाकी के क्षमतावान लोग भी अपने टैक्स का भुगतान इमानदारी से करने लगें तो उनको भी इस देश की तरक्की में योगदान देने का गर्व महसूस होगा. और धीरे धीरे टैक्स की कलेक्शन बढ़ेगी और रेट कम होता जाएगा.
दूसरा उदाहरण है कि ज्यादा टैक्स के रेट के लिए भी जनता खुद ही जिम्मेदार होती है. उदाहरण के लिए सरकार बहुत सी चीजें जैसे कि पानी, सड़क और स्वास्थ्य सेवाएं फ्री अथवा नाम मात्र के शुल्क पर उपलब्ध करवाती है क्योंकि इसका खर्चा वो टैक्स वसूल करके उठाती है. क्योकि हर चीज के लिए पैसा वसूल पाना बड़ा ही टेडा और मुश्किल काम होता है. अब क्योकि ये चीजें हमको मुफ्त में मिलती हुयी दिखाई दे रहीं हैं इसलिए हम इनका मूल्य ना समझ कर इनको बर्बाद करते हैं या इनका दुरपयोग करते हैं. मैं प्रतिदिन कितने लोगों को पीने के पानी से गाडी धोते हुए देखता हूँ. क्योकि सरकार ये पानी का खर्चा टैक्स की वसूल की हुयी रकम में से ही उठा रही है इसलिए अगर हम पानी को बर्बाद करेंगे तो हमारे टैक्स का रेट तो बढना तय है. इसलिए बढे हुए टैक्स के लिए भी हम स्वयं ही जिम्मेदार हैं. हम अपनी कुछ भी जिम्मेदारी नहीं समझते और सब कुछ सरकार के ऊपर डाल कर सिर्फ दोषारोपण करते रहना हमारा काम बन गया है.
हम नागरिकों का भी एक फर्ज बनता है कि सरकार जो भी सुविधा हमें हमारे टैक्स के पैसे से मुहैया करवाती है हम उसका बेहतर इस्तेमाल करें और उसे बर्बाद होने से बचाएँ.
आप सभी फोरम के सदस्यों से अनुरोध है कि अपने विचार प्रकट अवश्य करें.