Patriotic Shayari (Hindi)

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सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ुए कातिल में है


करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है
ए शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत का चरचा गैर की महफ़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है


वक्त आने दे बता देंगे तुझे ए आसमान,
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है
खैंच कर लायी है सब को कत्ल होने की उम्मीद,
आशिकों का आज जमघट कूच-ए-कातिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है


है लिये हथियार दुशमन ताक में बैठा उधर,
और हम तैय्यार हैं सीना लिये अपना इधर.
खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है


हाथ जिन में हो जुनून कटते नही तलवार से,
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से.
और भड़केगा जो शोला-सा हमारे दिल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है


हम तो घर से निकले ही थे बाँधकर सर पे कफ़न,
जान हथेली पर लिये लो बढ चले हैं ये कदम.
जिन्दगी तो अपनी मेहमान मौत की महफ़िल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है


यूँ खड़ा मौकतल में कातिल कह रहा है बार-बार,
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसि के दिल में है.
दिल में तूफ़ानों कि टोली और नसों में इन्कलाब,
होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको ना आज.
दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है,


वो जिस्म भी क्या जिस्म है जिसमें ना हो खून-ए-जुनून
तूफ़ानों से क्या लड़े जो कश्ती-ए-साहिल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ुए कातिल में है

-रामप्रसाद बिस्मिल
 
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा
हम बुलबुलें हैं इसकी, ये गुलिस्ताँ हमारा

ग़ुरबत में हों अगर हम, रहता है दिल वतन में
समझो वहाँ हमें भी, दिल हो जहाँ हमारा

परबत वो सबसे ऊँचा, हमसाया आसमाँ का
वो सन्तरी हमारा, वो पासबाँ हमारा

गोदी में खेलतीं हैं, इस के हज़ारों नदियाँ
गुलशन हैं जिन के दम से, रश्क़-ए-जनाँ हमारा

ऐ आब-ए-रूद-ए-गँगा, वो दिन है याद तुझको
उतरा तेरे क़िनारे, जब कारवाँ हमारा

मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम वतन है, हिन्दोस्ताँ हमारा

यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रोमाँ सब मिट गये जहाँ से
अब तक मगर है बाक़ी नाम-ओ-निशाँ हमारा

कुछ बात है के हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुशमन दौर-ए-ज़माँ हमारा

'इक़्बाल' कोई मरहम अपना नहीं जहाँ में
मालूम क्या किसी को दर्द-ए-निहाँ हमारा


- अल्लामा इक़्बाल
 
हे मातृभूमि ! तेरे चरणों में शिर नवाऊँ ।
मैं भक्ति भेंट अपनी, तेरी शरण में लाऊँ ।।

माथे पे तू हो चंदन, छाती पे तू हो माला ;
जिह्वा पे गीत तू हो मेरा, तेरा ही नाम गाऊँ ।।

जिससे सपूत उपजें, श्री राम-कृष्ण जैसे;
उस धूल को मैं तेरी निज शीश पे चढ़ाऊँ ।।

माई समुद्र जिसकी पद रज को नित्य धोकर;
करता प्रणाम तुझको, मैं वे चरण दबाऊँ ।।

सेवा में तेरी माता ! मैं भेदभाव तजकर;
वह पुण्य नाम तेरा, प्रतिदिन सुनूँ सुनाऊँ ।।

तेरे ही काम आऊँ, तेरा ही मंत्र गाऊँ।
मन और देह तुझ पर बलिदान मैं जाऊँ ।।

-रामप्रसाद बिस्मिल
 
कोई माता की ऊंमीदों पे ना ड़ाले पानी
कोई माता की ऊंमीदों पे ना ड़ाले पानी
जिन्दगी भर को हमें भेज के काला पानी
मुँह में जलाद हुए जाते हैं छले पानी
अब के खंजर का पिला करके दुआ ले पानी
भरने क्यों जाये कहीं ऊमर के पैमाने को

मयकदा किसका है ये जाम-ए-सुबु किसका है
वार किसका है जवानों ये गुलु किसका है
जो बहे कौम के खातिर वो लहु किसका है
आसमां साफ बता दे तु अदु किसका है
क्यों नये रंग बदलता है तु तड़पाने को

दर्दमंदों से मुसीबत की हलावत पुछो
मरने वालों से जरा लुत्फ-ए-शहादत पुछो
चश्म-ऐ-खुश्ताख से कुछ दीद की हसरत पुछो
कुश्त-ए-नाज से ठोकर की कयामत पुछो
सोज कहते हैं किसे पुछ लो परवाने को

नौजवानों यही मौका है उठो खुल खेलो
और सर पर जो बला आये खुशी से झेलो
कौंम के नाम पे सदके पे जवानी दे दो
फिर मिलेगी ना ये माता की दुआएं ले लो

देखे कौन आता है ईर्शाथ बजा लाने को

-रामप्रसाद बिस्मिल
 
ऐ मातृभूमि!
ऐ मातृभूमि तेरी जय हो, सदा विजय हो
प्रत्येक भक्त तेरा, सुख-शांति-कांतिमय हो
अज्ञान की निशा में, दुख से भरी दिशा में
संसार के हृदय में तेरी प्रभा उदय हो

तेरा प्रकोप सारे जग का महाप्रलय हो
तेरी प्रसन्नता ही आनंद का विषय हो

वह भक्ति दे कि 'बिस्मिल' सुख में तुझे न भूले
वह शक्ति दे कि दुख में कायर न यह हृदय हो


- रामप्रसाद बिस्मिल
 
राष्ट्र प्रहरी

राष्ट्र के प्रहरी सजग
सतत सीमा पर सजग
हाथ में हथियार है
वार को तैयार है ।

शत्रु पर आँखें टिकी
सांस आहट पर रुकी
सीमा न लांघ पाये
दुश्मन न भाग पाये ।

ठंड हो कितनी कड़क
झुलसती गरमी भड़क
परवाह न तूफान की
गोलियों से जान की ।

जान लेकर हाथ पर
खड़ा सीमा हर पहर
वीर बन पहरा सतत
राष्ट्र की रक्षा निरत ।

बस यही अरमान है
वार देनी जान है
चोट इक आये नही
आन अब जाये नही ।

बाढ़ हो तूफान हो
आपदा अनजान हो
वीर है तत्पर सदा
निसार जान को सदा ।

- कवि कुलवंत सिंह
 
मेरा भारत महान है।

मेरा यह मानना है
मेरा भारत सब दशों से महान है।
नहीं है ऐसा कोई अन्य देश,
युगों बीतने पर भी वैसा ही है परिवेश,
विभिन्नता में एकता के लिए, प्रसिद्ध है हर प्रदेश,
प्रेम, अहिंसा, भाईचारे का जो है देता संदेश।


मेरा यह मानना है
मेरा भारत सब देशों से महान है।
ऋषि-मुनियों की जो है तपोभूमि,
कई नदियों से भरी है ये पुण्य भूमि,
प्रकृति का है मस्त नजारा यहाँ,
छोड़ इसे जाए हम और अब कहाँ


मेरा यह मानना है
मेरा भारत सब देशों से महान है,
जाति, धर्म का है जहाँ अनूठा संगम,
देशभक्ति की लहर में, भूल जाते सब गम,
देश के लिए मर मिटने को सब है तैयार,
अरे दुनिया वालों, हम है बहुत होशियार,
न छेड़ो हमें, कासर नहीं है हम खबरदार,
अपनी माँ को बचाने, लेगें हम भी हथियार।

मेरा यह मानना है
मेरा भारत सब देशों से महान है ।
 
आज यह दीवार

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,

इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।

आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,

शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।

हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,

हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,

सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,

हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।
 
Utho Jawano, Bhaarat Maa Ke Diwano

Utho Jawano, Bhaarat Ma Ke Diwano, Dushman Ko Lalkar Do,
Jo Dale, Bharat Ma Pe Najare, Uase Maut Ke Ghat Utar Do|
Utho Jawano, Bhaarat Maa Ke Diwano……………………………..


Bharat Vansh Ke Vanshaj Tum Ho, Maharana Ke Poot Ho|
Desh Ki Khatir, Jaan Luta De, Aaise Tum Sapoot Ho|
Aan Padi Hai, Jo Maa Par Bipada, Bete Tum Wo Utar Do,
Utho Jawano, Bhaarat Maa Ke Diwano ....................


Dushman Humare Ghar Mein Ghuskar, Macha Raha Utpaat Hai,
Nirdosho Ki Hatya Karke, Karta Wo Maa Pe Aaghaat Hai|
Mere Desh Ke Veer Jawano, Dushman Ke Shish Utaar Do,
Utho Jawano, Bhaarat Maa Ke Diwano……………………………..


Tum Akele Nahi Ho Bandhu, Hum Bhi Tumhare Saath Hai,
Jism Bhale Hi Door Ho Tumse, Dil Se Tumhare Paas Hai|
Badho Bhaarat Ke Amar Sapooto, Dushman Ko Muhtod Jawab Do,
Utho Jawano, Bhaarat Maa Ke Diwano……………………………..


Jo Mit Gaye, Maa Ki Khatir, Unhe Shat – Shat Mera Pranaam Hai,
Ye Tuchchh Bhavbhini Shradhanjali, Un Veer Shahido Ke Naam Hai|
Tum Bhi Unke Path Pe Chalkar, Ek Naya Itihaas Do,
Utho Jawano, Bhaarat Maa Ke Diwano, Dushman Ko Lalkar Do,
Jo Dale, Bharat Maa Pe Najare, Uase Maut Ke Ghat Utar Do|



Utho Jawano, Bhaarat Maa Ke Diwano……………………………..

Jai Hind ! Jai Bharat !
 
भारत माँ की जय हो !

मुकुट शीश उन्नत शिखर
पदतल गहरा विस्तृत सागर
शोभित करती सरिताएं हों
जय हो ! भारत माँ की जय हो !

सत्य, अहिंसा, त्याग भावना
सर्वमंगल कल्याण प्रार्थना
जन - जन हृदय महक रहा हो
जय हो ! भारत माँ की जय हो !

पुरा संस्कृति उत्थान यहीं पर
धर्म अनेक उद्गम यहीं पर
पर उपकार सार निहित हो
जय हो ! भारत माँ की जय हो !

विद्वानो, वीरों की पुण्य धरा
बलिदानों से इतिहास भरा
तिलक रक्त मस्तक धरा हो
जय हो ! भारत माँ की जय हो !

साहित्य, खगोल, आयुर्विज्ञान
योग, अध्यात्म, अद्वैत, ज्ञान
ज्ञानी, दृष्टा, ऋषि, गुणी हों
जय हो ! भारत माँ की जय हो !

राष्ट्र उत्थान भाव निहित हो
धर्म दया से अनुप्राणित हो
जग में भारत विस्तारित हो
जय हो ! भारत माँ की जय हो !

-कवि कुलवंत सिंह
 
ये तिरंगा ये तिरंगा ये हमारी शान है
विश्व भर में भारती की ये अमिट पहचान है।
ये तिरंगा हाथ में ले पग निरंतर ही बढ़े
ये तिरंगा हाथ में ले दुश्मनों से हम लड़े
ये तिरंगा दिल की धड़कन ये हमारी जान है

ये तिरंगा विश्व का सबसे बड़ा जनतंत्र है
ये तिरंगा वीरता का गूँजता इक मंत्र है
ये तिरंगा वंदना है भारती का मान है

ये तिरंगा विश्व जन को सत्य का संदेश है
ये तिरंगा कह रहा है अमर भारत देश है
ये तिरंगा इस धरा पर शांति का संधान है

इसके रेषों में बुना बलिदानियों का नाम है
ये बनारस की सुबह है, ये अवध की शाम है
ये तिरंगा ही हमारे भाग्य का भगवान है

ये कभी मंदिर कभी ये गुरुओं का द्वारा लगे
चर्च का गुंबद कभी मस्जिद का मिनारा लगे
ये तिरंगा धर्म की हर राह का सम्मान है

ये तिरंगा बाईबल है भागवत का श्लोक है
ये तिरंगा आयत-ए-कुरआन का आलोक है
ये तिरंगा वेद की पावन ऋचा का ज्ञान है

ये तिरंगा स्वर्ग से सुंदर धरा कश्मीर है
ये तिरंगा झूमता कन्याकुमारी नीर है
ये तिरंगा माँ के होठों की मधुर मुस्कान है

ये तिरंगा देव नदियों का त्रिवेणी रूप है
ये तिरंगा सूर्य की पहली किरण की धूप है
ये तिरंगा भव्य हिमगिरि का अमर वरदान है

शीत की ठंडी हवा, ये ग्रीष्म का अंगार है
सावनी मौसम में मेघों का छलकता प्यार है
झंझावातों में लहरता ये गुणों की खान है

ये तिरंगा लता की इक कुहुकती आवाज़ है
ये रवि शंकर के हाथों में थिरकता साज़ है
टैगोर के जनगीत जन गण मन का ये गुणगान है

ये तिंरगा गांधी जी की शांति वाली खोज है
ये तिरंगा नेता जी के दिल से निकला ओज है
ये विवेकानंद जी का जगजयी अभियान है

रंग होली के हैं इसमें ईद जैसा प्यार है
चमक क्रिसमस की लिए यह दीप-सा त्यौहार है
ये तिरंगा कह रहा- ये संस्कृति महान है

ये तिरंगा अंदमानी काला पानी जेल है
ये तिरंगा शांति औ' क्रांति का अनुपम मेल है
वीर सावरकर का ये इक साधना संगान है

ये तिरंगा शहीदों का जलियाँवाला बाग़ है
ये तिरंगा क्रांति वाली पुण्य पावन आग है
क्रांतिकारी चंद्रशेखर का ये स्वाभिमान है

कृष्ण की ये नीति जैसा राम का वनवास है
आद्य शंकर के जतन-सा बुद्ध का सन्यास है
महावीर स्वरूप ध्वज ये अहिंसा का गान है

रंग केसरिया बताता वीरता ही कर्म है
श्वेत रंग यह कह रहा है, शांति ही धर्म है
हरे रंग के स्नेह से ये मिट्टी ही धनवान है

ऋषि दयानंद के ये सत्य का प्रकाश है
महाकवि तुलसी के पूज्य राम का विश्वास है
ये तिरंगा वीर अर्जुन और ये हनुमान है

- राजेश चेतन
 
भारत माता वंदना

हे हिममुकुट धारिणी मात भारती।
देवदुर्लभ जगतवंदित मात भारती।।

अखिल विश्व लहराए पताका आपकी।
जय हो सदा आपकी मात भारती।।

माँ आप शीतलता लिए हिमालय की।
अमृत जल-धारा गंगा यमुना की।।

चरण प्रक्षालन करता हिंद सागर है।
माँ ममता का आप अथाह सागर हैं।।

हे शस्य श्यामला जय हो मात भारती।
अखिल विश्व लहराए, पताका आपकी।।

नवनीत कुमार गुप्ता
 
हिरण्यगर्भे! जगद-अंबिके!
मातृभूमि! जय हे!

अमरनाथ से रामेश्वर तक,
सोमनाथ से भुवनेश्वर तक।
मेघालय - बंगाल - चेन्नई,
अंदमान, गोआ-परिसर तक।
शस्य-श्यामला, प्राणदायिनी!
पुण्य भूमि! जय हे!

है पीयूष-वारि की धारा,
सूर्य-सोम ने जिसे दुलारा।
पवन प्राण देता नव पल-पल,
षड ऋतुओं ने सदा सँवारा।
रज सिंदूर अर्गजा जैसी,
देवभूमि! जय हे!

अंतरिक्ष, मेदिनी, वनस्पति,
देती जिसको शांति नित्यप्रति।
आदि- स्थान विद्या का, देता
ज्ञान विज्ञान बृहस्पति।
वेदों की अवतार मही,
ऋषि-वृंद-भूमि जय हे!

गंगा- गोदावरी- नर्मदा,
देती जीवन-दान सर्वदा।
मांधाता, विक्रमादित्य, सुर-प्रिय
अशोक की शौर्य-संपदा।
राम-कृष्ण-गौतम-गांधी की,
कर्म भूमि! जय हे!

जहाँ विविध विचार-धारायें,
जीवन को सार्थक बनाएँ।
अनेकता में ऐक्य, ऐक्य में
अनेकता का पाठ पढ़ाएँ।
एक चित्त सब एक प्राण,
आदर्श भूमि! जय हे!

अकथनीय है गौरव-गरिमा,
गा न सके कोई कवि महिमा।
कोटि-कोटि प्राणों में बसती,
तेरी रम्य रूप-छवि-प्रतिमा।
अनुपमेय, अनवद्य, अपरिमित,
धर्म-भूमि! जय हे!

पूजें आबू-विंध्य-हिमाचल,
पाँव पखारे सागर का जल।
ममता का मधु-कोष सदा
बरसाते हैं लहराते बादल।
आभामयी मुक्ति-पथ-दात्री,
पितृ-भूमि! जय हे!

है गीर्वाण धरित्री पावन,
जन-कल्याण मही मनभावन।
देती है आदेश प्रेम का,
ऋषि-निर्वाण-स्थली सुहावन।
स्वर्गादपि गरीयसी अनुपम,
जन्म भूमि! जय हे!

- प्रो. आदेश हरिशंकर
 
वंदन मेरे देश

वंदन मेरे देश-तेरा वंदन मेरे देश
पूजन अर्चन आराधन अभिनंदन मेरे देश
तुझसे पाई माँ की ममता
और पिता का प्यार
तेरे अन्न हवा पानी से
देह हुई तैयार
तेरी मिट्टी-मिट्टी कब है चंदन मेरे देश
वंदन मेरे देश-तेरा वंदन मेरे देश

भिन्न भिन्न भाषाएँ भूषा
यद्यपि धर्म अनेक
किंतु सभी भारतवासी हैं
सच्चे दिल से एक
तुझ पर बलि है हृदय-हृदय स्पंदन मेरे देश
वंदन मेरे देश-तेरा वंदन मेरे देश

पर्वत सागर नदियाँ
ऐसे दृश्य कहाँ
स्वर्ग अगर है कहीं धरा पर
तो है सिर्फ़ यहाँ
तू ही दुनिया की धरती का नंदन मेरे देश
वंदन मेरे देश-तेरा वंदन मेरे देश

-चंद्रसेन विराट
 
देश वासियों याद करो

देश वासियों याद करो तुम उन महान बलिदानों को।
देश के खातिर जान लुटाई, देश की उन संतानों को।

जिनके कारण तान कर छाती खड़ा यह पर्वतराज है।
जिनके चलते सबके सर पर आज़ादी का ताज है।
महाकाल भी काँपा जिनसे मौत के उन परवानों को।
देश वासियों याद करो...

देख कर टोली देव भी बोले देखो-देखो वीर चले।
गर पर्वत भी आया आगे, पर्वत को वो चीर चले।
जिनसे दुश्मन डर कर भागे ऐसे वीर जवानों को।
देश वासियों याद करो...

जिनने मौत का गीत बजाया अपनी साँसों की तानों पर।
पानी फेरा सदा जिन्होंने दुश्मन के अरमानों पर।
मेहनत से जिनने महल बनाया उजड़े हुए वीरानों को।
देश वासियों याद करो...

हँस-हँस कर के झेली गोली जिनने अपने सीनों पर।
अंत समय में सो गए जो रख कर माथा संगीनों पर।
शत-शत नमन कर रहा है मन मेरा ऐसे दीवानों को।
देश वासियो याद करो...

विकास परिहार
 
यह हिंदुस्तान है

यह हिंदुस्तान है अपना
हमारे युग-युग का सपना
हरी धरती है नीलगगन
मगन हम पंछी अलबेले

मुकुट-सा हिमगिरि अति सुंदर
चरण रज लेता रत्नाकर
हृदय गंगा यमुना बहती
लगें छ: ऋतुओं के मेले

राम-घनश्याम यहाँ घूमे
सूर-तुलसी के स्वर झूमे
बोस-गांधी ने जन्म लिया
जान पर हँस-हँस जो खेले

कर्म पथ पर यह सदा चला
ज्ञान का दीपक यहाँ जला
विश्व में इसकी समता क्या
रहे हैं सब इसके चेले।

- डॉ. गोपालबाबू शर्मा
 
मातृ-भू, शत-शत बार प्रणाम
ऐ अमरों की जननी, तुमको शत-शत बार प्रणाम,
मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।
तेरे उर में शायित गांधी, 'बुद्ध औ' राम,
मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।

हिमगिरि-सा उन्नत तव मस्तक,
तेरे चरण चूमता सागर,
श्वासों में हैं वेद-ऋचाएँ
वाणी में है गीता का स्वर।
ऐ संसृति की आदि तपस्विनि, तेजस्विनि अभिराम।
मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।

हरे-भरे हैं खेत सुहाने,
फल-फूलों से युत वन-उपवन,
तेरे अंदर भरा हुआ है
खनिजों का कितना व्यापक धन।
मुक्त-हस्त तू बाँट रही है सुख-संपत्ति, धन-धाम।
मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।

प्रेम-दया का इष्ट लिए तू,
सत्य-अहिंसा तेरा संयम,
नयी चेतना, नयी स्फूर्ति-युत
तुझमें चिर विकास का है क्रम।
चिर नवीन तू, ज़रा-मरण से -
मुक्त, सबल उद्दाम, मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।

एक हाथ में न्याय-पताका,
ज्ञान-द्वीप दूसरे हाथ में,
जग का रूप बदल दे हे माँ,
कोटि-कोटि हम आज साथ में।
गूँज उठे जय-हिंद नाद से -
सकल नगर औ' ग्राम, मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।

- भगवती चरण वर्मा
 

भारत क्यों तेरी साँसों के, स्वर आहत से लगते हैं,
अभी जियाले परवानों में, आग बहुत-सी बाकी है।
क्यों तेरी आँखों में पानी, आकर ठहरा-ठहरा है,
जब तेरी नदियों की लहरें, डोल-डोल मदमाती हैं।

जो गुज़रा है वह तो कल था, अब तो आज की बातें हैं,
और लड़े जो बेटे तेरे, राज काज की बातें हैं,
चक्रवात पर, भूकंपों पर, कभी किसी का ज़ोर नहीं,
और चली सीमा पर गोली, सभ्य समाज की बातें हैं।

कल फिर तू क्यों, पेट बाँधकर सोया था, मैं सुनता हूँ,
जब तेरे खेतों की बाली, लहर-लहर इतराती है।

अगर बात करनी है उनको, काश्मीर पर करने दो,
अजय अहूजा, अधिकारी, नय्यर, जब्बर को मरने दो,
वो समझौता ए लाहौरी, याद नहीं कर पाएँगे,
भूल कारगिल की गद्दारी, नई मित्रता गढ़ने दो,

ऐसी अटल अवस्था में भी, कल क्यों पल-पल टलता है,
जब मीठी परवेज़ी गोली, गीत सुना बहलाती है।

चलो ये माना थोड़ा गम है, पर किसको न होता है,
जब रातें जगने लगती हैं, तभी सवेरा सोता है,
जो अधिकारों पर बैठे हैं, वह उनका अधिकार ही है,
फसल काटता है कोई, और कोई उसको बोता है।

क्यों तू जीवन जटिल चक्र की, इस उलझन में फँसता है,
जब तेरी गोदी में बिजली कौंध-कौंध मुस्काती है।

- अभिनव शुक्ला
 
भारत तुझसे मेरा नाम है,
भारत तू ही मेरा धाम है।
भारत मेरी शोभा शान है,
भारत मेरा तीर्थ स्थान है।
भारत तू मेरा सम्मान है,
भारत तू मेरा अभिमान है।
भारत तू धर्मों का ताज है,
भारत तू सबका समाज है।
भारत तुझमें गीता सार है,
भारत तू अमृत की धार है।
भारत तू गुरुओं का देश है,
भारत तुझमें सुख संदेश है।
भारत जबतक ये जीवन है,
भारत तुझको ही अर्पण है।
भारत तू मेरा आधार है,
भारत मुझको तुझसे प्यार है।
भारत तुझपे जां निसार है,
भारत तुझको नमस्कार है।

-अशोक कुमार वशिष्ट
 
सिंह हो तो उठो गर्जना करो
और सियार हो, तो कुछ कहना नही है ।
दुष्मन के वार पर पलट वार तो करो
गर कायर हो, तो कुछ करना नही है ।

अपनी संख्या पर गर नाज़ है तुम्हें
उस नाज़ जैसा कुछ तो कर गुजरो
वरना तो कीडे भी जन्मते हैं करोडों
मरना है जो कीडों सा, कुछ कहना नही है ।

जिनके बाजू मे है ताकत और हिम्मत
एक बार जोश से उनकी जयकार तो करो
भरलो स्वयं में उनका ये जज्बा जोश का
कमजोर ही रहना है, तो कुछ कहना नही है ।

घर और पाठशाला बने केंद्र नीति का
राष्ट्र प्रेम से बच्चों को कर दो ओत प्रोत
हर बच्चा बनें एक आदर्श सैनिक भी
सिखाओ ये पाठ कभी डरना नही है ।


समय पडे तो खुद ललकारो दुश्मन को
एक दिन तो हम सबको मरना यहीं है
डिस्को नही, हमको है तांडव की जरूरत
वरना हम जैसों की फिर सजा यही है ।
 
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