भारत अब पुनर्रचना की बाट जोह रहा है

alexjay

New Member
गत ढाई सौ वर्षों में हुए सारे प्रयोग कमोबेश विफल हुए हैं। इन प्रयोगों के परिणामस्वरूप प्रचलन में आई सारी व्यवस्थाएं बंद गली में पहुंच गई हैं या पहुंच रही हैं। समाजनीति, अर्थनीति सहित लगभग सभी व्यवस्थाओं को फिर से गढ़ने की आवश्यकता है। आज निश्चित रूप से भारत पुनर्रचना की बाट जोह रहा है। यह काम केवल सत्ता परिवर्तन से संभव नहीं है। इसके लिए हमें व्यापक धरातल पर प्रयास करना होगा।
इस पूरी सृष्टि में भारत की अपनी एक विशेष भूमिका है, अपना एक विशेष महत्व है। भारतवर्ष का इतिहास हजारों वर्षों का है। अलग-अलग कालखंडो में हमारी केन्द्रीय धारा को खंडित या विचलित करने के लिए चुनौतियां भिन्न-भिन्न रूपों में सामने आई हैं। आज के संदर्भ में तथाकथित वैश्वीकरण इन चुनौतियों का संवाहक बना है। केन्द्रीयकरण एकीकरण व बाजारीकरण जैसी चुनौतियां इसी के विभिन्न रूप हैं। हमें इनकी काट विकेंद्रीकरण, विविधीकरण एवं बाजारमुक्ति के रूप में विकसित करनी है।
तीन वर्षों के अध्ययन अवकाश के दौरान विभिन्न क्षेत्रों एवं विभिन्न स्तरों के लोगों से मिलते हुए मुझे देश में सब स्थानों एवं सब स्तरों पर एक नए आत्मविश्वास और एक नई स्फूर्ति का स्पष्ट आभास हुआ। साधारण लोगों में अपनी धार्मिक, नैतिक एवं सामाजिक आस्थाओं को सार्वजनिक स्तर पर अभिव्यक्त करने का साहस आ रहा है। राष्ट्रीय पुनर्निर्माण के लिए यह शुभ संकेत है।
भारतीय समाज संचालन की कुछ विशिष्टताएं हैं, जिसके फलस्वरूप विपरीत परिस्थितियों में भी आज राष्ट्र चल रहा है। जैसे, भारत का समाज सिर्फ राजसत्ता से ही नहीं बल्कि धर्मसत्ता, समाजसत्ता और अर्थसत्ता के सम्मिलित प्रयासों से संचालित होता है। यह सामान्य बात नहीं है। यही भारत की प्राणशक्ति है। पुनर्रचना के इस महायज्ञ में इन चारों सत्ताओं की भूमिका होगी।
मैंने अनुभव किया है कि देश में आज भी सज्जन शक्ति दुर्बल नहीं हुई है, वह केवल संयोजित नहीं है। हर व्यक्ति अपने-अपने स्तर पर अपनी-अपनी क्षमता से कार्य कर रहा है। अनेक लोग गौरक्षा के कार्य में लगे हैं। कुछ लोग जल संरक्षण के कार्यों में लगे हैं, लुप्त हुए नदी-नालों एवं तालाबों को पुनर्जीवित कर रहे हैं। अनेक जैविक खेती के माध्यम से भूमि की सहज उर्वरता लौटाने का प्रयास कर रहे हैं। अनेक विभिन्न स्तरों पर पाठशालाएं चलाकर साधारण बच्चों के शिक्षण में जुटे हैं।
अनेक नए मंदिरों एवं अन्य धार्मिक संस्थाओं का निर्माण करवा रहे हैं, पुराने मंदिरों एवं अन्य धार्मिक संस्थाओं का जीर्णोद्धार करवा रहे हैं और इनके माध्यम से सामुदायिक संप्रभुता एवं सक्रियता के पुरातन भारतीय भाव को पुनर्जीवित करने में लगे हैं। अनेक अन्य लोग ऐसे ही अनेकानेक सार्वजनिक कार्यों में निस्वार्थ भाव से लगे हैं। इन्हीं अनुभवों से एक कल्पना सामने आई, ‘हमारा जिला हमारी दुनिया’। जिले के लोग अपने साधन, प्रतिभा एवं श्रम का उपयोग करते हुए स्वयं अपने विकास की चिंता करें। वैसे भी यह देश समाज सत्ता से ही अधिक संचालित होता है। राष्ट्र की अर्थव्यवस्था सामाजिक पूंजी से ही चलती है, राजसत्ता या राजपूंजी से नहीं। इसी में से एक बात निकलकर आई :
समाज आगे सत्ता पीछे,
तब ही होगा पूर्ण विकास,
सत्ता आगे समाज पीछे,
तब तो होगा सत्यानाश।
देश में सज्जन शक्ति बहुत प्रबल है। उसी से देश चल रहा है, राज्य से नहीं। परंतु राज्य को भी जिम्मेदार बनाना हमारा कर्तव्य है। देश केवल राजनीतिक दलों का नहीं है, हम सबका है। हम सभी को इसके लिए सोचना है। जब आप अपने जिले में वापस लौट कर जाएं तो वहां भारत विकास संगम में बताई गई कार्ययोजना के अनुसार सक्रिय हो जाएं। इस कार्य में समाज के हर वर्ग को जोड़ें और सबको साथ लेकर चलें। दृढ़संकल्प के साथ किए गए आपके प्रयास को समाज का भरपूर सहयोग मिलेगा, ऐसा मेरा पूर्ण विश्वास है।

k. N. Govindacharya | के. एन. गोविन्दाचार्य
 
Back
Top