स्वतन्त्रता दिवस कविताएं

seema

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|| आजादी के परवानो का सम्मान करो ||

युग बदल गया और फ़िर चरखे का चक्र चला ,फ़िर काला शासन ढकने चला श्वेत खादी
खूंखार शासको की खूनी तलवारों से ,बापू ने हंसकर मांगी अपनी आजादी
जो चरण चल पड़े आजादी की राहों पर,वो रुके न क्षणभर ,धुप,धुआं,अंगारों से
उठ गया तिरंगा एक बार जिसके कर में,वो झुका न तिल भर गोली की बौछारों से

इसीलिए ध्वजा पर पुष्प चढाने से पहले ,
तुम शीश चढाने वालों का सम्मान करो ii
आरती सजाने से पहले तुम इसीलिए ,
आजादी के परवानो का सम्मान करो


कितने बिस्मिल ,आजाद सरीखे सेनानी ,इस पुण्य पर्व से पहले ही बलिदान हुए
जब अवध और झाँसी पे थे गोले बरसे ,तो मन्दिर ,मस्जिद साथ- साथ वीरान हुए
जलियांबाग में जिनका नरसंहार हुआ ,वो इसी तिरंगे को फहराने आए थे
जिनके प्रदीप बुझ गए गए अधूरी पूजा में,वो इसी निशा में ज्योत जलाने आए थे

तलवार उठाने से पहले तुम इसीलिए
मिट जाने वालों का गौरव गान करो ||
आरती सजाने से पहले तुम इसीलिए ,
आजादी के परवानो का सम्मान करो||


भारतीयों को मिला स्वराज्य इसी स्वर्णिम क्षण में,सदियों से खोया भारत ने गौरव पाया
कट गयी इसी दिन माँ की लौह श्रृंखलाएं,पीड़ित जनता ने फ़िर से सिंहांसन पाया
१५ अगस्त है नेता जी का मधुर स्वप्न ,बापू के अमर दीप की गायक वीणा है
अंधियारे भारत का ये है सौभाग्य सूर्य , माँ के माथे का सुंदर श्याम नगीना है
इसलिए आज मन्दिर जाने से पहले ,तुम राष्ट्र ध्वज के नीचे जन गन गान करो
आरती सजाने से पहले तुम इसीलिए ,आजादी के परवानो का सम्मान करो......
 

गली गली में बजते देखे आज़ादी के गीत रे |
जगह जगह झंडे फहराते यही पर्व की रीत रे ||

सभी मनाते पर्व देश का आज़ादी की वर्षगांठ है |
वक्त है बीता धीरे धीरे साल एक और साठ है ||
बहे पवन परचम फहराता याद जिलाता जीत रे |
गली गली में बजते देखे आज़ादी के गीत रे |
जगह जगह झंडे फहराते यही पर्व की रीत रे ||

जनता सोचे किंतु आज भी क्या वाकई आजाद हैं |
भूले मानस को दिलवाते नेता इसकी याद हैं ||
मंहगाई की मारी जनता भूल गई ये जीत रे |
गली गली में बजते देखे आज़ादी के गीत रे |
जगह जगह झंडे फहराते यही पर्व की रीत रे ||


हमने पाई थी आज़ादी लौट गए अँगरेज़ हैं |
किंतु पीडा बंटवारे की दिल में अब भी तेज़ है ||
भाई हमारा हुआ पड़ोसी भूले सारी प्रीत रे |
गली गली में बजते देखे आज़ादी के गीत रे |
जगह जगह झंडे फहराते यही पर्व की रीत रे ||
 
मातृभूमि जय हे!

मातृभूमि जय हे!


हिरण्यगर्भे! जगद-अंबिके!
मातृभूमि! जय हे!

अमरनाथ से रामेश्वर तक,
सोमनाथ से भुवनेश्वर तक।
मेघालय - बंगाल - चेन्नई,
अंदमान, गोआ-परिसर तक।
शस्य-श्यामला, प्राणदायिनी!
पुण्य भूमि! जय हे!

है पीयूष-वारि की धारा,
सूर्य-सोम ने जिसे दुलारा।
पवन प्राण देता नव पल-पल,
षड ऋतुओं ने सदा सँवारा।
रज सिंदूर अर्गजा जैसी,
देवभूमि! जय हे!

अंतरिक्ष, मेदिनी, वनस्पति,
देती जिसको शांति नित्यप्रति।
आदि- स्थान विद्या का, देता
ज्ञान विज्ञान बृहस्पति।
वेदों की अवतार मही,
ऋषि-वृंद-भूमि जय हे!

गंगा- गोदावरी- नर्मदा,
देती जीवन-दान सर्वदा।
मांधाता, विक्रमादित्य, सुर-प्रिय
अशोक की शौर्य-संपदा।
राम-कृष्ण-गौतम-गांधी की,
कर्म भूमि! जय हे!

जहाँ विविध विचार-धारायें,
जीवन को सार्थक बनाएँ।
अनेकता में ऐक्य, ऐक्य में
अनेकता का पाठ पढ़ाएँ।
एक चित्त सब एक प्राण,
आदर्श भूमि! जय हे!

अकथनीय है गौरव-गरिमा,
गा न सके कोई कवि महिमा।
कोटि-कोटि प्राणों में बसती,
तेरी रम्य रूप-छवि-प्रतिमा।
अनुपमेय, अनवद्य, अपरिमित,
धर्म-भूमि! जय हे!

पूजें आबू-विंध्य-हिमाचल,
पाँव पखारे सागर का जल।
ममता का मधु-कोष सदा
बरसाते हैं लहराते बादल।
आभामयी मुक्ति-पथ-दात्री,
पितृ-भूमि! जय हे!

है गीर्वाण धरित्री पावन,
जन-कल्याण मही मनभावन।
देती है आदेश प्रेम का,
ऋषि-निर्वाण-स्थली सुहावन।
स्वर्गादपि गरीयसी अनुपम,
जन्म भूमि! जय हे!​
 


क्या क़ीमत है आज़ादी की
हमने कब यह जाना है
अधिकारों की ही चिन्ता है
फर्ज़ कहाँ पहचाना है

आज़ादी का अर्थ हो गया
अब केवल घोटाला है
हमने आज़ादी का मतलब
भ्रष्टाचार निकाला है

आज़ादी में खा जाते हम
पशुओं तक के चारे अब
‘हर्षद’ और ‘हवाला’ हमको
आज़ादी से प्यारे अब

आज़ादी के खेल को खेलो
फ़िक्सिंग वाले बल्लों से
हार के बदले धन पाओगे
‘सटटेबाज़ों’ दल्लों से

आज़ादी में वैमनस्य के
पहलु ख़ूब उभारो तुम
आज़ादी इसको कहते हैं?
अपनों को ही मारो तुम
आज़ादी का मतलब अब तो
द्वेष, घृणा फैलाना है ॥

आज़ादी में काश्मीर की
घाटी पूरी घायल है
लेकिन भारत का हर नेता
शान्ति-सुलह का कायल है
आज़ादी में लाल चौक पर
झण्डे फाड़े जाते हैं
आज़ादी में माँ के तन पर
चाक़ू गाड़े जाते है


आज़ादी में आज हमारा
राष्ट्र गान शर्मिन्दा है
आज़ादी में माँ को गाली
देने वाला ज़ीन्दा है

आज़ादी मे धवल हिमालय
हमने काला कर डाला
आज़ादी मे माँ का आँचल
हमने दुख से भर डाला

आज़ादी में कठमुल्लों को
शीश झुकाया जाता है
आज़ादी मे देश-द्रोह का
पर्व मनाया जाता है

आज़ादी में निज गौरव को
कितना और भुलाना है ?

देखो! आज़ादी का मतलब
हिन्दुस्तान हमारा है
आज़ादी पर मर मिट जाना
एक अरब को प्यारा है

मित्रो! आज़ादी का मतलब
निर्भय भारत-माता है
आज़ादी का अर्थ दूसरा
भारत भाग्य-विधाता है


प्यारो! आज़ादी का मतलब
अमर तिरंगा झण्डा है
आज़ादी दुश्मन के सर पर
लहराता इक डण्डा है

आज़ादी से अपने घर में
नई रौशनी आई है
आज़ादी पाकर भारत ने
जग में धूम मचाई है

आज़ादी की ख़ातिर हमने
कितने ही बलिदान दिए
आज़ादी पाने को जाने
कितनों ने ही प्राण दिए

आज़ादी ने संविधान का
हमको पाठ पढ़ाया है
आज़ादी में हमने पावन
लोकतन्त्र को पाया है

आज़ादी के संकल्पों को
हमने मन मे ठाना है ॥
 
Hindustani Hindi Poem

जहाँ हर चीज है प्यारी
सभी चाहत के पुजारी
प्यारी जिसकी ज़बां

वही है मेरा हिन्दुस्तान


जहाँ ग़ालिब की ग़ज़ल है

वो प्यारा ताज महल है
प्यार का एक निशां

वही है मेरा हिन्दुस्तान


जहाँ फूलों का बिस्तर है

जहाँ अम्बर की चादर है
नजर तक फैला सागर है
सुहाना हर इक मंजर है
वो झरने और हवाएँ,
सभी मिल जुल कर गायें
प्यार का गीत जहां
वही है मेरा
हिन्दुस्तान

जहां सूरज की थाली है

जहां चंदा की प्याली है
फिजा भी क्या दिलवाली है
कभी होली तो दिवाली है
वो बिंदिया चुनरी पायल
वो साडी मेहंदी काजल
रंगीला है समां
वही है मेरा
हिन्दुस्तान

कही पे नदियाँ बलखाएं

कहीं पे पंछी इतरायें
बसंती झूले लहराएं
जहां अन्गिन्त हैं भाषाएं
सुबह जैसे ही चमकी
बजी मंदिर में घंटी
और मस्जिद में अजां

वही है मेरा हिन्दुस्तान

कहीं गलियों में भंगड़ा है

कही ठेले में रगडा है
हजारों किस्में आमों की
ये चौसा तो वो लंगडा है
लो फिर स्वतंत्र दिवस आया
तिरंगा सबने लहराया
तिरंगा लेकर फिरे यहाँ-वहां
वहीँ है मेरा
हिन्दुस्तान
 
satya ahimsa prem pujari manavta ke gandhi they
dharti ke lal bhadur they desh swabhimani they
vijayee vishv tiranga pyara lehar lehar leharyeega
maha samar mei shaktiban bharat bharat kehlayega
 
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